हिंदी शोध संसार

मंगलवार, 26 जुलाई 2011

क्या ये सिर्फ उपयोगी बेवकूफ हैं?

मूल लेखक- एस गुरुमूर्ति साभार- एक्प्रेसबुज.कॉम अनुवाद- सत्यजीत प्रकाश

उदारवादियों और धर्मनिरपेक्षतावादियों की सूची देखिएः- जस्टिस राजिंदर सच्चर(देश में मुसलमानों की स्थिति पर मशहूर सच्चर समिति की रिपोर्ट के लेखक), दिलीप पडगांवकर(केंद्र सरकार द्वारा कश्मीर पर गठित तीन मध्यस्थों में से एक), हरीश खरे(प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार), रीता मनचंदा(भारत-पाक शांति के लिए संघर्ष करने वाली महिलाओं के एक समूह की स्थानीय साझेदार), वेद भासिन(कश्मीर टाइम्स के संपादक), हरिंदर बावेजा(खोजी संपादक, हेडलाइन्स टुडे), गौतम नवलखा व कमल चेनॉय(मानवाधिकार कार्यकर्ता), प्रफुल्ल विदवई (मशहूर स्तंभकार)

ये लोकप्रिय भारतीय उदारवादियों की सूची है, जो भारतीय संवाद में अहम प्रभाव रखते हैं- चाहे मामला कश्मीर का हो या धर्मनिरपेक्षता का, मामला भ्रष्टाचार का हो या सांप्रदायिकता का, बात नरेंद्र मोदी की हो या सोनिया गांधी का।

लेकिन ये सूची पद्म पुरस्कारों के लिए संभावित लोगों की सूची नहीं है। ये उन लोगों की सूची है जो गुलाम नबी फाई के अतिथि बनते रहे हैं। वही, गुलाम नबी फाई जिसे आईएसआई के लिए काम करने के आरोप में अमेरिकी खुफिया एजेंसी एफबीआई ने गिरफ्तार किया है। उन्नीस जुलाई को वाशिंग्टन टाइम्स में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, फाई को जिन आरोपों में गिरफ्तार किया गया है उनमें पाकिस्तानी सरकार और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से लाखों डॉलर लेना, कश्मीर से भारत को निकाल बाहर करने के लिए निर्वाचित अमेरिकी अधिकारियों को प्रभावित करने के लिए इन पैसों से योजनाएं बनाना शामिल है। फाई को कश्मीर से भारत को निकाल बाहर करने के लिए योजना बनाने के जुर्म में गिरफ्तार नहीं किया गया है क्योंकि अमेरिका में ऐसा करना अपराध नहीं है। बल्कि फाई पाकिस्तानी हितों के लिए अमेरिकी अधिकारियों के प्रभाव को खरीदने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। भारतीय कानून के मुताबिक, अगर इन लोगों को पता होता कि ये फाई कौन है, तो फाई की सूची में शामिल इन भारतीय उदारवादियों पर देशद्रोह का मामला हो सकता है और अगर इनको फाई के बारे में पता नहीं था तो पूर्व संपादक आर जगनाथन के मुताबिक सिर्फ उपयोगी बेवकूफ हैं। लेकिन क्या ये सिर्फ बेवकूफ हैं।

इस मामले में अपने ४५ पृष्ठों के शपथपत्र में एफबीआई ने फाई पर विदेशी नीतियों के एजेंट के रूप में काम करने का षडयंत्र रचने का आरोप लगाया। रिपोर्टों के मुताबिक, एफबीआई ने अपने शपथ पत्र में फाई को अमेरिकी में कश्मीरी चोले में पाकिस्तानी हितों के लिए काम करने वाला बताया। जिन्हें कश्मीरी चोले के रूप में कश्मीर अमेरिकी कौंउसिल नामक संस्था बना रखी थी। रिपोर्टों के मुताबिक, फाई पाकिस्तान में बैठे अपने आकाओं से बात-बात पर सलाह लेता था। एफबीआई ने अपने शपथ पत्र में कहा है कि हर साल ढाई करोड़ से साढ़े तीन करोड़ के हिसाब से फाई ने पाकिस्तान से कम से कम ४ मिलियन(यानी बीस करोड़ रुपये) कश्मीर मुद्दे को पाकिस्तान के पक्ष में मोड़ने के लिए लिये। लेख के शुरू में जिन लोगों का जिक्र किया गया है वो वही लोग है जो फाई की कार्ययोजना को आगे बढ़ाने में उसके पैरवीकार हैं। कश्मीर से भारत को भगाने के लिए आईएसआई के इशारे पर फाई द्वारा आयोजित विचार मंथन और बैठकों में ये लोग शामिल होते रहे हैं।

ऐसा लगता है कि फाई को पाकिस्तान में बैठे उनके आकाओं से संबंध बताने के लिए एफबीआई ने पुख्ता काम किया है। ऐसा करने के लिए एफबीआई ने फाई और उसके आकाओं के करीब चार हजार ईमेलों और फोन-कॉलों को इकट्ठा किया है। ऐसा लगता है कि फाई के एक सहयोगी ने जुर्म कबूल कर लिया है कि फाई आईएसआई का एक कारकून है और एफबीआई इस सहयोगी को बतौर गवाह इस्तेमाल करना चाहता है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार इस गवाह के मुताबिक, पाकिस्तान सरकार के लिए प्रचार करने के लिए आईएसआई ने कश्मीर अमेरिकी कौंसिल का निर्माण करवाया। चूंकि फाई एक कश्मीरी है और उसके पास अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से मास्टर की डिग्री है इसलिए वो अमेरिका को बैगर संदेह हुए वहां काम कर सकता था। रिपोर्टों के मुताबिक, आईएसआई एजेंट होने के बाद उसने पाकिस्तान और आईएसआई के निर्देश पर काम करना शुरू किया। इसके लिए पैसे उसे आईएसआई से मिलते थे। उपरोक्त गवाह के मुताबिक, फाई के भाषण का अस्सी प्रतिशत हिस्सा आईएसआई लिखकर देता था और बाकी बीस प्रतिशत पर भी उसकी स्वीकृति लेनी होती थी। इसलिए फाई सौ फीसदी आईएसआई का एजेंट था।

हमारे उपरोक्त उदारवादी और धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवी इस आईएसआई एजेंट यानी गुलाम नबी फाई द्वारा आयोजित सम्मेलनों में भारत के बतौर महत्वपूर्ण अतिथि शिरकत करते थे। इन बुद्धिजीवियों की मदद से फाई भारत के हितों को नुकसान पहुंचाने में बड़े ही प्रभावी ढ़ंग से कारगर हुआ। फाई का मुकाबला करने के लिए भारत सरकार को पिछले साल कश्मीर कैडर के एक रिटायर्ड आईएएस अधिकारी वजाहत हबीबुल्लाह को वाशिंगटन स्थित अमेरिकी दूतावास में सामुदायिक मामलों का मंत्री नियुक्त करना पड़ा।

कितनी विचित्र बात है। एक तरफ भारत को कश्मीर से भगाने के लिए प्रधानमंत्री के वर्तमान मीडिया सलाहकार हरीश खरे और कश्मीर मामलों पर सरकार के तीन मध्यस्थों में एक दिलीप पडगांवकर आईएसआई के पैसों से आयोजित समारोहों में शिरकत कर भारत के हितों को चोट पहुंचाते हैं, आहत करते हैं, नुकसान पहुंचाते हैं दूसरी तरफ, भारत सरकार को नुकसान की भरपाई के लिए कश्मीर कैडर के एक रिटायर्ड आईएएस अधिकारी को वाशिंगटन भेजना पड़ता है। नतीजा साफ है कि जो लोग फाई के जरिए आईएसआई के षडयंत्र के हिस्सा हैं वही लोग आज यूपीए सरकार के भी अंग हैं।

मगर, सवाल है कि क्या भारत को कश्मीर से बाहर करने के षडयंत्र में फाई इन महत्वपूर्ण लोगों ये जाने बगैर शामिल कर लिया कि इनके विचार उसके आकाओं के हितों को आगे बढाएगा। फाई ने किसी अरुण शौरी, किसी चो रामास्वामी, किसी एमजे अकबर, किसी अर्नब गोस्वामी को क्यों नहीं बुलाया। साफ है कि इन लोगों के विचार आईएसआई के एजेंडे और षडयंत्र को आगे नहीं बढ़ाते, बल्कि अवरुद्ध कर देते। फाई जानता था कि उसकी सूची में शामिल भारतीय उदारवादियों का जम्मू-कस्मीर पर विचार अलगाव वादियों के लिए हितकर होगा और आईएसआई के षडयंत्र को सफल बनाएगा। इसलिए इन्हें सिर्फ उपयोगी बेवकूफ मानना ठीक नहीं है, बल्कि इसे खारिज करना आसान है।


फाई की सूची के दो उदारवादी अब भी अतिउच्च पद पर हैं- एक जम्मू-कश्मीर पर केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त मध्यस्थ हैं(कैबिनेट सचिव स्तरीय वेतन और सुविधाएं) तो दूसरे प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार हैं। प्रधानमंत्री जी, ये सबूत कोई भारतीय पुलिस नहीं दे रही है। बल्कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी एफबीआई दे रही है। ये वही अमेरिका है जिसे आप सबसे ज्यादा प्यार करते हैं। आप सुन रहे हैं।


पद-टिप्पणी- इस लेख में कुलदीप नैयर का नाम शामिल नहीं है।

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